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उसका दोष क्या है भाग - 13 15 पार्ट सीरीज

     उसका दोष क्या है (भाग -13) 

             कहानी अब तक 
विद्या अपने माता-पिता के साथ एक माह तक धार्मिक स्थलों की सैर कर वापस आती है। रमेश उसे और उसके माता-पिता को उसके मायके छोड़ कर आता है।
                   अब आगे 
प्रातः विद्या अपने माता-पिता से वापस अपने घर जाने की बात कहती है क्योंकि उसका अवकाश समाप्त हो गया था। उसके भाई ने कहा - 
   " इतने दिन बाद तो यहां आई हो कम से कम दो-चार दिन तो रह जाओ। यहीं से विद्यालय जाना-आना कर लो। जीजा  तो बोलकर ही गए हैं जब आना होगा तो खबर कर देने के लिए,तब ले जाएंगे आकर। मैं उनको जाकर बता दूँगा कि कुछ दिन तुम यहां रहोगी,और उसके बाद मैं छोड़  आऊंगा"।
विद्या मान गई वह भी कुछ दिन अपने भाई-भाभी के साथ रहना चाहती थी। एक सप्ताह विद्या वहां रही। वहीं से उसने  विद्यालय आना-जाना किया, और आज वह अपनी ससुराल वापस जा रही थी। उसे छोड़ने के लिए उसके भैया जा रहे थे। रमेश ने उसके भैया से कहा था -
   "जितने दिन विद्या वहाँ रहना चाहे मुझे कोई आपत्ति नहीं है,और जब आना चाहे तो आप छोड़ जाइएगा"।
विद्या अपने भाई के साथ अपनी ससुराल आई। यहां आने के बाद उसने देखा,उसका पूरा परिवार नये बने मकान में रहने लगा था। पुराने मकान में कुछ मरम्मत करके 2 किरायेदारों को रहने के लिए दे दिया गया था। विद्या आश्चर्यचकित हो गई,बिना गृह प्रवेश की पूजा के नए घर में कैसे रहने आ गए सभी।
  उसके सास-ससुर से उसके भैया ने वापस जाने की आज्ञा मांगी। उन्होंने कहा-  "अरे रुको तो इतने दिन बाद आए रात में खाना खाकर निकलना"।
परंतु उन्होंने रात तक रुकने में अपनी असमर्थता दिखाई फिर भी उसकी सास ने उन्हें थोड़ी देर रोक लिया और उनके सामने चाय नाश्ता आदि परोस दिया। थोड़ी देर सबसे बातें करके भैया चले गए।
   विद्या मकान के मास्टर बेड रूम की ओर जाने लगी तो सासू माँ ने रोका।
विद्या ने अपनी सासू मां से कहा -
"माँ मुझे मेरा सामान उधर रखना है"।
उसकी सासू मां ने इशारा कर दिया अतिथि कक्ष की ओर, कहा-  
"सुखिया रख आयी है वहाँ"।
  वह अतिथि कक्ष में आई। कमरा सलीके से सजा हुआ था। उसका ड्रेसिंग टेबल, पलंग, अलमारी, सभी कुछ करीने से सजा था। आश्चर्यचकित थी वह,अतिथि कक्ष उसके लिए है,क्या वह अतिथि है ?
थोड़ी देर आराम करके रसोई घर की ओर जाने लगी तो संगीता दिखाई दी। संगीता से पूछा -
   "तुम कब आई"?
उसने कहा -   "मैं तो बहुत दिन से यहां हूं,तुम जब घूमने गई थी उसी समय मैं आई थी। तुम चली गई थी,इसलिए मुलाकात नहीं हो पाई। उसकी गोद में एक बच्चा भी था,जिसे देख उसने पूछा- 
"यह बच्चा किसका है"? 
संगीता मुस्कुराई -   "मेरी गोद में है तो मेरा ही होगा न! यह मेरी बिटिया है सात महीने की। इसका अन्नप्राशन करना था इसीलिए मैं यहां आई थी,गृह प्रवेश की पूजा के साथ अन्नप्राशन भी हो गया"।
विद्या को झटके पर झटके लग रहे थे। उसे पता भी नहीं था,संगीता मां भी बन गई। तो क्या रमेश संगीता से मिलने जाता रहता था ? परंतु उसने कभी बताया नहीं,कि वह गाँव जा रहा है। उसने पूछा-
   "इसका जन्म वहां गांव में ही हुआ"?
  संगीता  -  "नहीं प्रथम प्रसव मायके में होता है,तो मैं मायके गई थी। प्रसव के दो महीने बाद मैं वापस यहाँ आ गई थी"।
  विद्या – "तुम यहाँ आ गई थी,कहां पर"?
  संगीता -   "तुम्हें नहीं पता ? उन्होंने एक और घर भाड़ा में लिया हुआ है,जहां मैं रहती थी। छोटे बच्चे के साथ मुझे परेशानी होती,इसलिए मां जी भी वहां ही रहती थीं"|
  विद्या -   "दूसरा घर कब लिया भाड़े में"?
   "तुम्हारी शादी के समय,मैंने शादी करने की अनुमति तो दे दी थी,परंतु मैं नहीं चाहती थी हम दोनों एक साथ रहें और हमारे बीच किसी तरह की प्रतियोगिता हो,इसलिए मैंने मेरे लिए अलग घर लेने की बात कही थी। मेरी बात उन्होंने मान लिया था। किराए में घर लेकर वहाँ पूरी व्यवस्था कर दी। वहां मैं रहती थी और वे मुझसे मिलने आते रहते थे। मुझे अकेलापन नहीं लगे इसलिए मां जी और बाबा मेरे पास जाकर रहते थे"।
   विद्या -  "फिर तुम अभी कैसे इसमें आ गई"?
  संगीता  -  "यह मकान इस तरह बना है कि मेरे तुम्हारे बीच किसी तरह की कोई प्रतियोगिता नहीं होगी। तुम्हारा अलग कमरा है जिसमें सारी सुविधा है। आगे खुला बरामदा है,इसमें प्रवेश के लिए भी एक अलग ही रास्ता है।इसको तुम अपने तरीके से सजा सकती हो। तुम चाहो तो हमारे साथ खाना खाना,वरना अपने कमरे में ले जाकर खाना खा सकती हो। चाहोगी तो तुम्हारे लिए अलग एक रसोई भी बन जाएगा"।
विद्या ने रसोई में जाने का विचार छोड़ दिया,और अपने कमरे में आकर लेट गई । उसके साथ इतना बड़ा धोखा। उसने तो संगीता के घर में रहने से मना नहीं किया था,फिर अलग घर लेकर रखने की क्या आवश्यकता थी ? इसका मतलब है रमेश व्यापार के सिलसिले में बाहर जाने की बात कह कर संगीता के पास ही रहने जाता था। विद्या की आंखों के आगे अंधेरा छा रहा था। उसके पैसे से बना मकान और वह उस में अतिथि है,संगीता घर की मालकिन है। वह पूरे घर में घूमेगी की और विद्या का एक कमरा, सबसे अलग-थलग। विवाह के 2 वर्ष हो गए परंतु अभी तक मां नहीं बनी,और संगीता की गोद में एक बेटी आ गई। भरी-पूरी गृहस्थी तो संगीता की हो रही है। विवाह के बाद जब उसने परिवार बढ़ाने की बात की थी रमेश ने कहा था -  "दो चार साल तो हम घूम फिर लें,फिर जिम्मेवारी तो बढ़ेगी ही। एक बार परिवार बढ़ने के बाद स्वतंत्रता कहां मिल पाती है,इसलिए अभी थोड़ा घूम फिर लो। तीन-चार वर्ष के बाद हम परिवार बढ़ाने के संबंध में सोचेंगे - उसके साथ 4 वर्ष बाद सोचने की बात हो रही थी और संगीता के साथ वह परिवार बढ़ा रहा है। अब जाकर उसे समझ में आ रहा था,बहुत सोची समझी साजिश के साथ रमेश ने उससे विवाह किया। यदि प्यार के लिए किया होता तो उसके साथ परिवार बढ़ाने से उसे परहेज नहीं होता। और अभी तीर्थ यात्रा का कार्यक्रम भी उसने साजिश के अंतर्गत ही बनाया।
गृह प्रवेश का दिन पहले तय करके उसके अनुसार विद्या को माता-पिता के साथ बाहर भेज दिया, संगीता के साथ मिलकर गृह प्रवेश की पूजा कर ली। मकान बनाने में अकाउंट खाली हुआ विद्या का, कर्ज लिया विद्या ने और गृह प्रवेश किया संगीता ने। रमेश ने उसके साथ यह कैसी साजिश की ?
  अभी उसको रमा की बहुत याद आ रही थी। रमा उसकी सच्ची सहेली,उसने तो विवाह के समय कहा भी था यह विवाह उचित नहीं है। रमा जानती थी रमेश पहले जितना भी जुड़ा हो विद्या से,परंतु अब वह संगीता से पूरी तरह जुड़ गया है,इसलिए वह विद्या के साथ न्याय नहीं कर पाएगा। इसलिए वह विवाह के समय दु:खी भी लग रही थी। सोचते सोचते रमा को लग रहा था उसका सिर फट जाएगा। तभी कमरे में सुखिया आई,उसने पूछा -  "भाभी खाना ला दूं"?
  अब विद्या को ध्यान आया,वह तो सुबह की ही खाना खाई हुई है। उसके बाद उसने कुछ भी नहीं खाया है,परंतु उसे खाने की इच्छा नहीं हो रही थी
। उसने कहा -  
  "अभी नहीं,अभी खाने की इच्छा नहीं है। ऐसा कर एक कप चाय ला दे"।
   सुखिया चली गई,थोड़ी देर में वह चाय लेकर आई। विद्या ने पूछा -
    "भैया आ गए"?
   " नहीं अभी नहीं आए हैं"।
  " आएंगे तो मुझे बताना"।
सुखिया  -   "जी अच्छा,अभी थोड़ी देर में खाना ला दूंगी"?
  विद्या -    "नहीं, भैया आएंगे तभी साथ में खाना खाऊंगी"।
  सुखिया चली गई। रमा को चाय पीने के बाद थोड़ी राहत मिल रही थी,और अब वह अपने अगले कदम के संबंध में विचार कर रही थी। तभी रमेश कमरे में आया।
रमेश  -  "कैसी हो विद्या ? सुना आज तुम आने के थोड़ी देर बाद से ही कमरे में लेटी हुई हो,तबीयत ठीक नहीं है क्या"?
  विद्या -   "जिसके साथ इतना अधिक धोखा हो उसकी तबीयत कैसे ठीक रह सकती है भला"?
रमेश उसके पास बैठ गया और उसे बाहों में समेट उसके सिर को अपने कंधे पर रख लिया,फिर उसके बाल को सहलाने लगा।
  रमेश  -   "क्या बात है विद्या, तुम आज इतनी उखड़ी-उखड़ी बातें क्यों कर रही हो ? मैंने ऐसा क्या गलत कर दिया ? मैं तुम्हें जरा भी दु:खी नहीं देख सकता"।
विद्या -  "इसीलिए मुझे अतिथि कक्ष में रखा"?
   रमेश  -  "ओह इसीलिए मेरी मलिका नाराज है। अरे यह तुम्हारा विशेष कक्ष है। अंदर की तरफ हमेशा कुछ न कुछ होता रहता है । कभी कोई तो कभी कोई आता रहता है,इससे तुम्हें कोई परेशानी नहीं हो इसलिए तो यह तुम्हारे लिये बनवाया। तुमने इसे अतिथि कक्ष नाम दिया,परंतु मैंने तो इसे प्रारंभ से ही विशेष कक्ष कहा है। यह हमारा ख्वाबगाह होगा"।
  विद्या  -  "बहुत अच्छे, मुझे बाहर भेजकर गृह प्रवेश की पूजा कर ली,फिर कैसी मलिका"?
  रमेश -  "ओहो तो नाराजगी की असली वजह यह है। देखो विद्या,मैं गृह प्रवेश करना नहीं चाहता था, परंतु उस मकान के लिए दो किराएदार मिल रहे थे जो अच्छा भाड़ा दे रहे थे। इस जगह बार-बार इतना अच्छा भाड़ा मिलने का संजोग नहीं मिलता। इसलिए हमने एक सामान्य सा दिन दिखाकर गृह-प्रवेश कर दिया। गृह प्रवेश की पार्टी भी नहीं हुई है,बहुत साधारण ढंग से गृह प्रवेश हुआ है। बस पूजा हुई,यदि तुम होती तो शानदार कार्यक्रम करता। परंतु तुम नहीं थी,इसलिए बेमन से सब कुछ किया"।
  विद्या -   "और बे मन से ही बाप भी बने"?
   रमेश   -  " हे भगवान! आज तो बड़े-बड़े गोले दागे जा रहे हैं। हां विद्या,यही समझो। मैं तो पूरी सावधानी रख रहा था परंतु जाने कब गड़बड़ हो गई। और तुम सोचोगी संगीता के पास कब जाता था। जहां मेरी दुकान है वहीं पर उसके लिए घर लिया था मैंने जिससे उसको परेशानी नहीं हो। हां यहां मैं तुमसे झूठ बोला था,मैंने कहा वह मायके गई है। मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता था,लेकिन संगीता ने बिना दूसरा घर लिए मुझे शादी के लिए अनुमति देने से मना कर दिया था,इसलिए मुझे मजबूर होकर उसके लिए घर लेना पड़ा। और मैंने तुमसे भी तो वादा किया था,मैं उसके साथ कोई अन्याय नहीं होने दूंगा। इसलिए मैं उससे भी मिलता रहता था। अब तो गुस्सा थूक दो मेरी रानी,मैं हमारा खाना लेकर यहीं आ रहा हूं"।
  विद्या  -   "संगीता के साथ नहीं खाओगे"?
   रमेश  -  "अब तो व्यंग बाण मत छोड़ो,तुमसे पिछले एक महीना सेअधिक समय से दूर रहा हूँ। अब मैं तुमसे और अधिक दूरी बर्दाश्त नहीं कर सकता। प्लीज गुस्सा थूक दो। चलो फ्रेश होकर आओ,मैं खाना ला रहा हूं। आज सिर्फ हम दोनों एक साथ खाना खाएंगे। हमारे बीच कोई नहीं आ सकता?.... कोई भी नहीं"।
  उसने विद्या को आलिंगनबद्ध कर लिया और उसका चुंबन लेते हुए उसके प्रति अपने उत्कट प्रेम की आतुरता दिखाने लगा।
     
                                   क्रमशः 
         निर्मला कर्ण

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1 Comments

वानी

17-Jun-2023 09:54 AM

Nice

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